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खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय चल रहा है। इस मौसम में किसान खरीफ की विभिन्न फसलों से काफी लाभ कमाते हैं और बारिश के मौसम में किसान सिंचाई की लागत से बच सकते हैं। जून का आधा महीना बीत चुका है और जुलाई आने वाला है। ऐसे में यह समय खरीफ की फसलें बोने के लिए उपयुक्त माना जाता है। किसान इस समय में औषधीय पौधों की खेती करके भी अधिक लाभ कमा सकते हैं। क्योंकि यह मौसम औषधि पौधों के लिए उपयुक्त माना जाता है। अभी खरीफ की फसलें बोने का समय चल रहा है। इसमें किसान धान, मक्का, कपासबाजरा और सोयाबीन जैसी विभिन्न फसलों की खेती में करते हैं। मानसून आने के साथ ही इन फसलों की रोपाई बुवाई में तेजी आई है। ऐसे में कुछ किसान उपरोक्त खरीफ की फसलें उगा रहे हैं और कुछ किसान इससे हटकर कई औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। ऐसा करने का किसानों का उद्देश्य केवल कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त करना है। औषधीय पौधों की खेती करने से किसान को अधिक लाभ मिलता है। वही सरकार के द्वारा किसानों को मदद भी दी जाती है। इस वजह से किसानों का ध्यान औषधीय पौधों की खेती करने की और अग्रसर हो रहा है।

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देश के किसान इस समय मेडिसिनल प्लांट्स की खेती भी कर रहे हैं। इनकी मांग बाजार में अधिक होने के कारण किसानों को इनकी अच्छे दाम मिलते हैं। वहीं किसानों को सरकारी मदद भी मिलती है। इस समय जिन औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है, उनमें सतावर, लेमन ग्रास, कौंच, ब्राह्मी और एलोवेरा प्रमुख रूप से हैं।

कौंच की खेती करने से फायदा :-

कौंच एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, जो कि मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है। इस पौधे की खेती किसान 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच में कर सकते हैं। 1 एकड़ में कौंच की खेती करने में करीब 50 से 60 हजार रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए तक होती है। इसकी बुवाई के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है।

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ब्राह्मी की खेती की जानकारी :

ब्राह्मी का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाएं बनाने में किया जाता है। यह एक लोकप्रिय औषधीय पौधा है। इसकी खेती करने के लिए बारिश कम समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जिसकी डिमांड हाल ही के वर्षों में काफी बढ़ी है। किसान इस वक्त ब्राह्मी के साथ एलोवेरा की खेती भी कर सकते हैं। इसकी खेती जुलाई से लेकर अगस्त के बीच में की जाती है। कई कंपनियां इस पौधे की खेती करने के लिए किसानों को सीधे कॉन्ट्रैक्ट देती हैं।

सतावर की खेती से किसानों को लाभ :

खरीफ के मौसम में किसान सतावर और लेमनग्रास जैसे औषधीय पौधों की खेती कर सकते हैं। दोनों की खेती अलग अलग समय पर की जाती है। लेमनग्रास की खेती के लिए फरवरी से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। लेकिन शतावर के लिए अगला पखवाड़ा सबसे उपयुक्त माना जाता है। सतावर की खेती से किसान काफी अधिक फायदा कमाते हैं। वहीं लेमनग्रास की खेती करने से यह फायदा होता है कि इसे एक बार लगाने पर किसान इससे कई साल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

नई दिल्ली। कहावत है ''बिन पानी सब सून''। वाकई बिना पानी के सब कुछ शून्य है। बारिश बिना खरीफ के आठ फसलों का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है। हल्के मानसून के चलते खरीफ की फसलों की बुवाई पिछड़ती जा रही है।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी पिछले साल के मुकाबले, इस बार खरीफ की फसलों की बुवाई में ९.२७ फीसदी गिरावट हुई है। बुवाई का यह आंकड़ा ४१.५७ हेक्टेयर तक पीछे जा रहा है। साल २०२१ में ४४८.२३ लाख हेक्टेयर जमीन में खरीफ की फसलें बोई गईं थीं, लेकिन इस साल आठ जुलाई तक सिर्फ ४०६.६६ लाख हेक्टेयर फसल बोई गईं हैं। कम बारिश के चलते धान और तिलहन की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहीं हैं। महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में कमजोर बारिश के कारण खेती लगातार पिछड़ती जा रही है।

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पंपसेट लगाकर महंगा डीजल फूंककर धान की रोपाई कर रहे किसान

कमजोर मानसून की मार झेल रहे किसान पंपसेट लगाकर धान की रोपाई कर रहे हैं। समय पर धान की रोपाई हो जाए, इसके लिए महंगा डीजल भी फूंक रहे हैं। इससे फसल की लागत बढ़ रही है, जो भविष्य में घाटे का सौदा बन सकती है।

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धान रोपाई की क्या स्थिति है ?

चालू खरीफ सीजन २०२२ में ८ जुलाई तक ७२.२४ लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई और बुवाई हो चुकी है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक यह ९५ लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मतलब इसमें करीब २३.९५ फीसदी की कमी है, जो २२.७५ लाख हेक्टेयर की कमी को दर्शाता है। धान सबसे ज्यादा पानी खपत वाली फसलों में से एक है। इसलिए इसकी रोपाई के लिए किसान आमतौर पर बारिश का ही इंतजार करते हैं।

बुवाई में दलहन आगे तो तिलहन की फसल हैं पीछे

पिछले साल के मुकाबले बात करें तो दलहन की फसलों की बुवाई में ०.९८ फीसदी का इजाफा है। साल २०२१ में कुल दलहन फसलों की ४६.१० लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जबकि इस बार ४६.५५ लाख हेक्टेयर की हो चुकी है। हालांकि, अरहर की बुवाई में २८.५८ परसेंट की गिरावट है। पिछले साल मतलब २०२१ में २३.२२ लाख हेक्टेयर में अरहर की बुवाई हुई थी। जबकि इस बार १६.५८ लाख हेक्टेयर में ही हो सकी है। उड़द की बुवाई में १०.३४ फीसदी की कमी है।

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उधर तिलहन की फसलों की बुवाई में लगभग २०.२६ फीसदी की गिरावट है। साल २०२१ में ८ जुलाई तक ९७.५६ लाख हेक्टेयर में मूंगफली, सूरजमुखी, नाइजर सीड सोयाबीन और अन्य तिलहन फसलों की बुवाई हो चुकी थी। जबकि इस साल सिर्फ ७७.८० लाख हेक्टेयर में हुई है। सोयाबीन की बुवाई में २१.७४ फीसदी की कमी है। क्योंकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बारिश में देरी हुई है। इसकी बुवाई के लिए खेत में नमी की जरूरत होती है।

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२०२२ में बाजरा की बुवाई की स्थिति?

बात करते हैं साल २०२२ में बाजरे के बुवाई की। बाजरा की बुवाई पिछले साल से अधिक हो चुकी है। इस साल ६५.३१ लाख हेक्टेयर में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का और स्माल मिलेट्स की बुवाई हुई है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक सिर्फ ६४.३६ लाख हेक्टेयर में हुई थी। बाजरा की बुवाई पिछले साल के मुकाबले इस बार ७९.२६ फीसदी अधिक है. हालांकि, मक्का की बुवाई २३.५३ फीसदी जबकि रागी की ४७.४४ परसेंट पिछड़ी हुई है। ------- लोकेन्द्र नरवार
भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत सरकार इस साल चावल के निर्यात पर आंशिक प्रतिबंध लगा सकती है, आइए जानते है क्यों? हाल ही मे ग्लोबल फूड मार्केट मे खाद्य सामग्री की कमी आई है और इसका ज्यादा असर चावल की सप्लाई पर हुआ है। खाद्य सामग्री मे आई इस कमी का प्रमुख कारण रूस -यूक्रेन युद्ध है, इस युद्ध की वजह से खाद्य सामग्री, ग्लोबली जिस स्तर पर पहुंचनी चाहिए थी, उस स्तर पर उपलब्ध नही हो पा रही है। इसका काफी बड़ा प्रभाव चीन फूड मार्केट पर पड़ा है।


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चीन वो देश है जहां चावल की सालाना खपत 16 करोड़ टन है, लेकिन चीन मे कुल चावल का उत्पादन करीब 14 करोड़ टन होता है। मांग और उत्पादन के बीच के इस गैप को भरने के लिए चीन बाकी का चावल विदेशों से आयात करता है। अब इस बार खरीफ की फसल पर मौसम का विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण इसका उत्पादन कम हो पाया है।


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साथ ही साथ चीन में चावलों का अधिक मात्रा में उपयोग वाइन और नूडल्स बनाने मे होता है। इसके साथ ही चीन मे टूटे चावल खाने का ट्रेंड भी है, जिस वजह से वहां चावल की खपत ज्यादा होती है। यही कारण है कि इस बार चीन, भारत से चावल आयात करने वाले देशों के बीच मे एक प्रमुख खरीदार के रूप मे उभर कर सामने आया है। वैसे चीन भारत से हर साल चावल नहीं खरीदता, लेकिन ग्लोबल मार्केट में चावल की उपलब्धता कम होने की वजह से मजबूरी में चीन को भारत से चावल खरीदने पड़ रहे हैं। अक्सर ग्लोबल मार्केट में टूटे चावल की बिक्री कम होती है, लेकिन जब खाने की कमी हो तो टूटे चावल भी बिक जाते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार हुआ है और चीन ने भारी मात्रा में भारत से टूटे चावल खरीदे हैं। अब चूंकि खाद्य सामग्री की कमी वैश्विक स्तर पर आई हुई है। इसलिए इस बात को ध्यान मे रखते हुए और हाल के दिनों में घरेलू सप्लाई मे आई कुछ कमी को देखते हुए भारत सरकार चावल एक्सपोर्ट पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। गौर करने वाली बात है कि भारत दुनिया का 40 फीसदी चावल का एक्सपोर्ट करता है। ऐसे में अगर चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लग गया तो दुनिया में हड़कंप मच सकता है।